नंगाई अउ महगाई ले तो बने, बेइलाज ही मर जावं

धरमराज आज के एक वचन दे..,
गरीब ल बिमारी झन दे।
देना हे त जिनगी दे अवरधा भर..,
नही तव राहन दे।
वो कोती महगार्इ हे
ये तनी नंगार्इ
अइसन ले भला तो
बेइलाज ही मरन दे..।।


          मनखे के देह म उच-निच तो होते रिथे जर कभु जर बुखार त कभु खांसी खोखी। मरइया बर बड़े-बड़े बिमारी का नानकुन ह घलो ओखी हो जथे। एकरे सेती देह म कुछु जनाथे तव दऊड़ के अस्पताल कोती आथे। अम्मर खाके कोनो नइ आय हे का अमीर का गरीब सबला एक दिन मरना हे फेर जतन पानी अउ इलाज बने रिथे त अपन अवरधा भर जीये के आस रिथे।
          आज अस्पताल के हालत देखबे त एक डहर महगार्इ अउ दूसर डहर नंगार्इ हे अइसन म गरीब मन बिमारी के इलाज कराय बर अस्पताल के दुवारी जाय के बजाय यमराज के दुवार जाना जादा सोहलियत समझथे। अतेक नवा-नवा तकनीक अउ कोरी खौरखा अस्पताल के राहत म लोगन के अइसन सोच के कोनो तो कारण होही। डाक्टर मन हरेक बिमारी के इलाज करे के दावा करथे, दावा तो अइसे करथे जानो मानो यमराज उंकरे दब म हेबे। रावण ल बाली ह अपन खखौरी म दबाय रिहीस वोइसने बरोबर पराबेट अस्पताल वाला मन यमराज ल अपन खखौरी म दबाय रिथे। जब तक ले उंकर आगु म पइसा कुड़होत रिबे यमराज दब म रही। जहां पइसा कऊड़ी कम होइस तहां यमराज निकल के गरीब के परान ल हर लेथे।
          पराबेट के महगार्इ ल देखत सरकार ह सरकारी अस्पताल म गरीब मन के रोग रार्इ टारे बर बड़भारी खर्चा करके दवर्इ बुटी अऊ सेवादार राखे हे। ये अस्पताल मन ह सेवा ले जादा गड़बड़ी, अधरसÍी काम, मनमौजी अउ आय दिन हड़ताल के कारन जादा चर्चा म रिथे। इहां के काम काज ल देखबे तव ये यमलोक ले कम नइ जनाय। सबो मनखे मन अपन-अपन करम के लेखा जोखा ल धरे एति ले ओति होवत रिथे। घंटा पाहर के काम बर महिना पंद्राही ले जोहत रहिथे।
          आय दिन उहा नवा नवा पंचन होथे ओ दिन झन महतारी ह आटो म जचकी होगे हे। सात सौ बिस्तर के अस्पताल म का ओकर बर ठउर नइ रिहीस। जीव के डर तो सबो ल रिथे का अमीर का गरीब बपरी ह जी के डर म काहरत जीव बचाय बर अस्पताल जाबो करिस त उहू ह फत नइ परिस। न घर म न अस्पताल म, न बेड म न खटिया म, भितरी म न बाहिर म नरसिम्हा बरोबर दुवार म लइका अवतरगे।
          दरद म काहरत महतारी के चिचियाइ ल अवइया जवइया बिलमइया सबो ह सुनिस, नइ सुनिस तव सिरिफ अस्पताल के करमचारी अउ डाक्टर। चार पइसा कम लागही किके बपरी ह पराबेट ल छोड़के सरकारी म आय रिहीस। आजकल पराबेट म लइका बियाना छोटे मोटे बात नोहे आठ ले पंद्रह हजार खर्चा आथे। खौर भगवान सब बनाथे बनगे तव बनगे बिगड़तिस त उंकर का जातिस जेकर जातिस तेकर जातिस।
          इंकर उपर्इ अतकेच भर नोहे येमन तो उपद्रो ले नंगर्इ कर देथे। बड़े डाक्टर मन नवसिखिया मन के भरोसा तव यहू नवसिखिया मन आय दिन हड़ताल म कुद परथे। मरीज मन तालाबेली होत रिथे अउ ये मन अपन मांग ल मनाय बर घेखरर्इ करथे। कोनो ल काके संसो त येमन ल अपन नौकरी अउ तनख फिकर रिथे। मसीन अउ गोली दवर्इ के बात ह तो ये फाइल ले ओ फाइल म समटा जथे। अस्पताल ह कोनो काम के नइये अइसे बात नोहे, निति अउ विचार तो कमाल के हे लेकिन अमल मे लावे तब तो। जतका नाम जस करके कमाय रिथे ततका ल तो असाढ़ के मोरी म उलद डारथे।
         कहि देबे त रिस करथे फेर देख के घलो कइसे आंखी मुंद लेबो। मरीज मन ह अपने सुते के पलंग ल ढकेल के अपरेसन खोली म लेगथे किके कोनो सुने होहू मै तो अपन आखी म देखेहवं। मै पुछेव कस जी तै दुच्छा पलंग ल काबर लेगत हस अउ येमा के मरीज काहां हे। ओ हा जवाब दिस- अरे भर्इ मिही तो मरीज आवं अपन आंखी के आपरेसन कराय बर आपरेसन खोली जाथवं। पलंग म मिही सुत जहू त ढकेलही कोन। ये जवाब ले मोर मन म कर्इ ठन सवाल खड़ा होइस फेर अइसन जवाब सुने के बाद का अऊ कुछू देखे सुने के हिम्मत होही ?



1 टिप्पणी: