वो... याचक बनके आथे


तइहा समे ले ये किस्सा चले आवत हाबे के कमजोर मनला रोटहा मन दबा देथे अउ अपन सत्ता चलाथे। राजा रजवाड़ा सिराय के बाद भी आज लोगन के मन ले पीढ़ी के शोषक अउ शासक के आदत ह नइ छुटे हावय। एक आदमी ल शासन करे के तव दूसर ल शोषित होय के आदत होगे हावय। कभू-कभू तो अइसे जनाथे मानो गरीब आम जनता ल सदियों तक शोषित रेहे के सजा मिले होही। 
छत्तीसगढ़ म ये बात अऊ जादा देखत म आथे के इहां आन राज के आदमी मन तको आके सेठ साहूकार हो जथे अउ छत्तीसगढ़िया मन बनिहार के बनिहार रही जाथे। इहां के लोगन मन खेती किसानी अउ रोजी-मजदूरी करइया हाबे तव आन मन अइसे समझथे के छत्तीसगढ़ पिछड़ा, अढ़हा अउ बनिहार मनके राज आए अऊ छत्तीसगढ़िया मनखे ल आसानी ले बुद्धू बनाके अपन सिक्का चलाये जा सकत हावय। असल कहे जाए तव कमजोरी छत्तीसगढ़िया मन म तको हावय, इहां घर के जोगी जोगड़ा आन गांव के सिद्ध वाला हिसाब चलत हाबे। बाहिर ले आथे तेकर बर रेहे-बसे, खाय-पिये सबोच के जोखा मड़ा देथन। ओमन हमर सिधवापन के फायदा उठावत अंगरी ल धरत-धरत मरूवा अउ टोटा ल तको अमर देथे। 
याचक बनके अवइया ह जब शासक बने खातिर चुनई म आथे तव हम अपनेच बेड़ा के समारथ मनखे, जेन मन चुनई म आथे ओला संग नइ देके आन ल चुन देथन, रूपिया अउ दारू म बेचा के। उही याचक मन चुनई जीते के बाद शासक बनके हमरे मुड़ी म बइठ जथे। आज चुनई अउ नेता के परिभाषा बदल गे हावय, समाज अउ जनता के सेवा सिरिफ देखावा आए असल म जनता अउ समाज के लगाम ल थामहे बर पद म आथे। पद पाये के बाद का होथे तने ल तो सरी दुनिया देखत हाबे। आज छत्तीसगढ़ के किसान ल ओकर उपज के सही दाम नइ मिलत हाबे, छत्तीसगढ़ के महतारी भासा म पढ़ई-लिखई नइ होवथाबे। जवान लइका मन बेरोजगार किंजरत हावय, जेन ल रोजगार मिले हावय तेन ल बखत म पगार नइ मिलत हाबे। इंकर कना योजना तो गजब अकन हावय फेर कागज म। 
मूल छत्तीसगढ़िया आज भी उपेक्षित हावय सिरिफ बाहरी नेता मनके सेती। येमन के नीति म छत्तीसगढ़िया मन दुबरावत हावय अउ परदेशिया मन पोक्खावत हाबे। कुछ छत्तीसगढ़िया नेता तको हावय पद म फेर कोनो फायदा के नइये, उंकर तो चलतीच नइये। संसार सोभा पद म बइठे आन मनके अंगरी म नाचने वाला नेता घलोक कोने काम के। बड़े-बड़े पद म परदेशिया अउ नाननान म छत्तीसगढ़िया, ये सब उंकरे चाल आए। नाननान गांव अउ पारा मोहल्ला के सियानी तो गांवे के मनखे मनला मिले हावय फेर राज के सियानी के गोठ करे जाये तव परदेशिया मन ही छत्तीसगढ़ ल चलावत हाबे। जेन मन ह छत्तीसगढ़ के अस्मिता अउ स्वाभिमान ल पांव तरी रऊंदे के उदीम करत हाबे। 
गिनती म मुठाभर होही तेन मन सरी राज ल मुठा म बांधे राखे हावय अउ मन म जेन आवथे तेन करत हावय। हमर म तो विरोध करे के तको हिम्मत नइये काबर के हम कुछू केहे के कोशिश करबो तव मुंह ल चपक देथे, कोनो छोड़इया तको नइ मिलही। परदेशियावाद के बात करे म छत्तीसगढ़िया मन उपर केस बनाके जेल म तको ठेस देथे। जेखर सरकार हवय ओमन ल तो अऊ कुछ केहे नइ सकस, राजद्रोह के केस ठोक दिही। अब तो गुने ल होगे, कोन जनी कब छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़िया शासक आही अउ परदेशिया मन भगाही?                
                                      * जयंत साहू*

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